अब चेक बाउंस पर कोर्ट के चक्कर खत्म! सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया सामने Cheque Bounce

By Prerna Gupta

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Cheque Bounce

Cheque Bounce – आज के डिजिटल जमाने में ज्यादातर लोग ऑनलाइन पेमेंट को तरजीह देने लगे हैं, लेकिन इसके बावजूद चेक का इस्तेमाल भी अब भी बड़े पैमाने पर होता है। खासकर जब बात किसी बिजनेस डील, प्रॉपर्टी खरीद या बड़ी रकम के लेन-देन की हो, तो लोग चेक से भुगतान करना पसंद करते हैं।

हालांकि, कई बार ऐसा भी होता है कि चेक बाउंस हो जाता है और फिर शुरू होता है कोर्ट-कचहरी का लंबा चक्कर। इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अब एक ऐसा फैसला सुनाया है जो लाखों लोगों के लिए राहत भरा हो सकता है।

चेक बाउंस – बड़ी परेशानी

जब किसी को आप चेक देते हैं और आपके अकाउंट में पैसे नहीं होते या कोई और वजह से वो चेक क्लियर नहीं होता, तो उसे चेक बाउंस कहा जाता है।

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ऐसे में सामने वाला व्यक्ति आपके खिलाफ केस दर्ज कर सकता है। इसमें सजा भी हो सकती है और जुर्माना भी। लेकिन असल समस्या तब होती है जब ये केस महीनों या सालों तक अदालतों में लंबित रह जाते हैं।

इस वजह से न सिर्फ पीड़ित व्यक्ति को परेशानी होती है, बल्कि आरोपी को भी बार-बार तारीख पर कोर्ट जाना पड़ता है।

सुप्रीम कोर्ट का नया नजरिया

अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरी प्रक्रिया को लेकर एक अहम राय दी है। कोर्ट ने कहा है कि चेक बाउंस के ज्यादातर मामलों में आपसी सहमति और समझौते के जरिए समाधान निकाला जा सकता है, इसलिए इन्हें लंबे समय तक अदालतों में लटकाने की कोई जरूरत नहीं है।

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दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने एक केस की सुनवाई के दौरान ये बात कही। इस केस में शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच समझौता हो गया था और आरोपी ने तय राशि भी चुका दी थी। इसके बावजूद निचली अदालत ने सजा सुनाई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए आरोपी की सजा को रद्द कर दिया और साफ कहा कि ऐसे मामलों में अगर समझौता हो जाए, तो अदालतों को सजा देने की बजाय मामले को खत्म कर देना चाहिए।

कोर्ट ने क्या सलाह दी निचली अदालतों को

सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को साफ सलाह दी है कि चेक बाउंस जैसे मामलों में केस को सुलझाने की प्रक्रिया तेज की जाए।

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कोर्ट का कहना है कि इन मामलों में लंबा मुकदमा चलाना लोगों पर मानसिक और आर्थिक दबाव बनाता है, जिससे बचा जाना चाहिए।

अगर दोनों पक्ष आपसी सहमति से विवाद खत्म करना चाहें, तो अदालत को भी उसी दिशा में कदम उठाना चाहिए।

क्यों है ये फैसला खास

चेक बाउंस एक रेग्युलेटरी अपराध माना जाता है, यानी ये कोई संगीन अपराध नहीं होता। इसमें आमतौर पर धोखा देने की मंशा नहीं होती, बल्कि कई बार हालात ऐसे बन जाते हैं कि चेक क्लियर नहीं हो पाता।

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इसलिए अदालतों को भी समझदारी से काम लेना चाहिए और देखना चाहिए कि क्या मामला बातचीत से सुलझाया जा सकता है।

इस फैसले के बाद उम्मीद की जा रही है कि लाखों केस जो देश की अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनका जल्द निपटारा हो सकेगा।

क्या आपको भी फंसा है ऐसा कोई केस

अगर आपके खिलाफ भी किसी ने चेक बाउंस का केस कर रखा है और आप उसकी भरपाई करना चाहते हैं, तो आप समझौते का रास्ता अपना सकते हैं।

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सुप्रीम कोर्ट की इस राय के बाद निचली अदालतें भी अब ऐसे मामलों में सुलह की दिशा में ज्यादा ध्यान देंगी।

आपको बस यह देखना है कि सामने वाला व्यक्ति भी समझौते के लिए तैयार है या नहीं। अगर हां, तो कोर्ट में अर्जी लगाकर केस को खत्म करवाया जा सकता है।

क्या करें अगर आपका चेक बाउंस हो जाए

अगर आप किसी को चेक दे रहे हैं, तो ये सुनिश्चित करें कि आपके खाते में पर्याप्त बैलेंस हो।

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अगर गलती से भी चेक बाउंस हो जाए और सामने वाला व्यक्ति शिकायत करता है, तो सबसे पहले उसके साथ बैठकर बात करें और भुगतान कर दें।

इससे मामला कोर्ट तक जाने से पहले ही सुलझ सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला उन सभी लोगों के लिए राहत की खबर है जो चेक बाउंस के मामलों में महीनों से परेशान हो रहे थे।

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अब अगर दोनों पक्षों के बीच समझौता हो जाता है, तो ना सजा होगी और ना ही बार-बार कोर्ट के चक्कर काटने पड़ेंगे।

ये फैसला कोर्ट के बोझ को कम करेगा और आम लोगों को जल्दी राहत दिलाने में मदद करेगा।

तो अगली बार जब भी चेक से लेन-देन करें, थोड़ी सतर्कता जरूर रखें और अगर कोई विवाद हो जाए, तो समाधान के लिए बातचीत का रास्ता सबसे बेहतर रहेगा।

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