Land Acquisition News – अगर आप भी उन लोगों में से हैं जिनकी जमीन सरकार ने अधिग्रहित की लेकिन सालों तक मुआवजा नहीं मिला, तो अब सुप्रीम कोर्ट की ओर से बड़ी राहत की खबर है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक पुराने भूमि अधिग्रहण केस में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जिससे कई भू-स्वामियों को इंसाफ मिलने का रास्ता साफ हो गया है। 23 साल से चले इस केस में अब जाकर भू मालिकों को न्याय मिला है, और यह फैसला भविष्य के लिए भी एक बड़ी मिसाल बन गया है।
यह मामला कर्नाटक का है, जहां एक औद्योगिक परियोजना के लिए साल 2003 में अधिसूचना जारी हुई और 2005 में जमीन पर कब्जा भी कर लिया गया। लेकिन मजेदार बात ये है कि जमीन ले ली गई, और मुआवजा देना भूल गए। जिन किसानों और ज़मीन मालिकों की ज़मीन ली गई, उन्हें सालों तक अदालतों के चक्कर काटने पड़े। हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली तो आखिरकार वो सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और अब उन्हें मुआवजा देने का आदेश आया है।
संपत्ति का अधिकार एक बुनियादी अधिकार है
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा कि बिना मुआवजा दिए किसी की भी जमीन नहीं ली जा सकती। ये सीधे तौर पर संविधान और कानून का उल्लंघन है। अदालत ने यह भी कहा कि संपत्ति का अधिकार अब मानव अधिकारों के तहत भी आता है, और अगर सरकार इस तरह से बर्ताव करती रही तो यह गंभीर मामला बन सकता है।
मुआवजा तुरंत दो महीने में दो – कोर्ट का निर्देश
कोर्ट ने यह भी कहा कि मुआवजे की राशि 2019 की बाजार दर के अनुसार तय की जाए, न कि 2003 की दरों के हिसाब से। और इस राशि का भुगतान अगले दो महीने में कर दिया जाए ताकि जमीन मालिकों को और लंबा इंतजार न करना पड़े। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि मुआवजे की गणना करते समय महंगाई और समय के साथ जमीन के मूल्य में हुई वृद्धि को भी ध्यान में रखा जाए।
कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला किया खारिज
इससे पहले कर्नाटक हाईकोर्ट ने भू मालिकों की मांग को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने बाजार दर के हिसाब से मुआवजा मांगा था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया और कहा कि इस मामले में बहुत बड़ा अन्याय हुआ है। कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का प्रयोग करके फैसला दिया जिससे यह मामला और भी खास बन गया।
सरकारी लापरवाही पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
इस फैसले में कोर्ट ने सिर्फ मुआवजा देने की बात ही नहीं की, बल्कि सरकारी अफसरों की लापरवाही पर भी कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने कहा कि जब से जमीन ली गई थी, सरकार और संबंधित विभाग मुआवजा देने को लेकर गंभीर ही नहीं थे। ये लापरवाही नहीं बल्कि इंसाफ से इनकार है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर जमीन का मुआवजा समय पर दे दिया गया होता तो यह पूरा मामला कोर्ट में आने की नौबत ही नहीं आती।
अब क्या मतलब है इस फैसले का
इस फैसले का मतलब सिर्फ इतना नहीं कि कुछ लोगों को उनका पैसा मिल जाएगा। इसका असली मतलब ये है कि अब हर उस व्यक्ति को ताकत मिलेगी जिसकी जमीन बिना उचित मुआवजे के ली गई है। अब अगर किसी की जमीन ली जाती है तो उसे यह अधिकार होगा कि वह बाजार दर के अनुसार उचित मुआवजा मांगे और कोर्ट तक जाए। यह एक मजबूत कानूनी उदाहरण बन गया है।
क्या सीखना चाहिए सरकारी विभागों को
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकारी अधिकारियों को अब ऐसे मामलों में गंभीरता दिखानी चाहिए। अगर भविष्य में भी किसी किसान या जमीन मालिक की जमीन ली जाती है तो समय पर मुआवजा तय किया जाए और जल्दी भुगतान किया जाए। कोर्ट ने साफ कहा है कि प्रशासनिक लापरवाही की वजह से किसी भी आम आदमी को नुकसान नहीं झेलना चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि – एक नजर में
- साल 2003 में अधिसूचना जारी हुई
- 2005 में जमीन पर कब्जा कर लिया गया
- मुआवजा नहीं दिया गया
- हाईकोर्ट में मांग खारिज
- सुप्रीम कोर्ट ने 2019 की दर से मुआवजा देने का आदेश दिया
- दो महीने में भुगतान सुनिश्चित करने को कहा गया
यह फैसला न सिर्फ कर्नाटक के उन भू मालिकों के लिए राहत है, बल्कि पूरे देश के लिए एक उदाहरण है। अगर सरकार या किसी एजेंसी ने आपकी जमीन ली है और आपको मुआवजा नहीं मिला है, तो आप भी अब इस कानूनी रास्ते से न्याय पा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह साबित कर दिया है कि देरी से सही, लेकिन इंसाफ जरूर मिलता है।