Old Pension Scheme – सरकारी कर्मचारियों में एक बार फिर से पुरानी पेंशन योजना यानी ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) को लेकर चर्चा तेज हो गई है। देशभर के लाखों कर्मचारी अब फिर से पुरानी स्कीम को लागू करवाने की मांग को लेकर सक्रिय हो रहे हैं। खास बात ये है कि केंद्र सरकार ने NPS यानी नेशनल पेंशन स्कीम के तहत काम कर रहे कर्मचारियों को एक नया ऑप्शन दिया है, जिसे ‘यूनिफाइड पेंशन स्कीम’ (UPS) कहा जा रहा है। सरकार ने 30 जून तक का समय दिया है कि जो भी कर्मचारी चाहें वो UPS का विकल्प चुन सकते हैं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही कहानी बयां कर रही है।
जानकारी के मुताबिक, केंद्र सरकार में काम कर रहे करीब 30 लाख एनपीएस कर्मचारियों में से अभी तक महज 30 हजार लोगों ने ही UPS में जाने का विकल्प चुना है। यानी आंकड़ों के लिहाज से देखें तो दो फीसदी से भी कम लोग इस नई स्कीम को अपनाना चाहते हैं। ऐसे में साफ है कि कर्मचारियों को UPS पर भरोसा नहीं है और वो पुरानी पेंशन योजना की बहाली को लेकर एक बार फिर से संगठित हो रहे हैं।
UPS क्यों नहीं है पसंद?
पुरानी पेंशन योजना के लिए काम कर रहे ‘नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम भारत’ के अध्यक्ष डॉ. मंजीत सिंह पटेल का कहना है कि UPS के प्रावधान काफी उलझाऊ हैं। इसमें पेंशन की कोई निश्चितता नहीं है। अगर कोई कर्मचारी तीस से पैंतीस साल की सेवा के बाद रिटायर होता है और UPS के तहत अपनी जमा पूंजी निकाल लेता है, तो उसे आखिरी सैलरी के पचास प्रतिशत की जगह मात्र तीस प्रतिशत पेंशन ही मिलेगी।
अब सोचिए, अगर किसी कर्मचारी की जल्दी मौत हो जाती है तो उसकी पत्नी को मात्र अठारह प्रतिशत पेंशन मिलेगी और उसके बाद सब कुछ खत्म। यानी पेंशन का कोई स्थायी आधार नहीं रहेगा। वहीं, एनपीएस के मुकाबले UPS से उतनी ही पेंशन पाने के लिए रिटायर हो चुका व्यक्ति कम से कम 16 साल तक जीवित रहना ज़रूरी होगा।
कर्मचारी संगठनों की क्या है राय?
अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (AIDEF) के महासचिव सी श्रीकुमार का कहना है कि कर्मचारियों का रुझान UPS को लेकर बेहद ठंडा है। वो इसके जटिल नियमों में फंसना नहीं चाहते। उनका सीधा सा कहना है कि सरकार उन्हें पुराने सिस्टम में वापस ले जाए जहां रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी सुरक्षित और शांत होती थी। अभी तक सिर्फ दो फीसदी कर्मचारियों ने ही UPS को अपनाया है, ये अपने आप में बहुत कुछ बयां करता है।
सरकार की तैयारी और कर्मचारी संगठनों की नाराजगी
केंद्र सरकार ने कर्मचारियों की सुविधा के लिए UPS कैलकुलेटर भी लॉन्च किया है। इसका मकसद ये है कि कर्मचारी UPS और NPS के तहत मिलने वाली संभावित पेंशन की तुलना कर सकें। लेकिन कैलकुलेटर से ज्यादा असर होता दिखाई नहीं दे रहा है।
कर्मचारी यूनियनें साफ कह चुकी हैं कि उन्हें UPS या NPS नहीं चाहिए। उनकी एक ही मांग है – पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल किया जाए। कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लाइज एंड वर्कर्स के महासचिव एसबी यादव का कहना है कि UPS कितना कारगर है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी तक 10 फीसदी कर्मचारी भी इस विकल्प को नहीं अपना पाए हैं।
आंदोलन की आहट
अब जब UPS की आखिरी तारीख यानी 30 जून नजदीक आ रही है, तो कर्मचारी संगठनों का गुस्सा फिर से सतह पर आ रहा है। पुरानी पेंशन योजना की बहाली को लेकर एक बार फिर से आंदोलन की रणनीति तैयार हो रही है। ऐसे में सरकार के लिए चुनौती बढ़ती जा रही है क्योंकि कर्मचारियों का साफ कहना है कि उन्हें भरोसेमंद और स्थायी पेंशन चाहिए, ना कि कोई नई अनिश्चित स्कीम।
पुरानी पेंशन योजना को लेकर जो लहर दोबारा उठी है, वो इस बार काफी मजबूत दिख रही है। कर्मचारी अब सिर्फ विकल्प नहीं चाहते, वो स्थायित्व चाहते हैं। UPS जैसी नई योजनाओं पर उनका भरोसा नहीं बन पा रहा है और ऐसे में अगर सरकार ने जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो आने वाले दिनों में आंदोलन और तेज हो सकता है।