Supreme Court News – किसी भी नौकरीपेशा इंसान के लिए उसकी सैलरी सबसे जरूरी होती है। उसी से वो अपना और अपने परिवार का खर्चा चलाता है। ऐसे में अगर किसी की सैलरी कट जाए तो सोचिए उस पर क्या बीतेगी। अब इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक सख्त और अहम फैसला सुनाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को साफ तौर पर कह दिया है कि एक बार अगर किसी कर्मचारी की सैलरी तय कर दी गई है, तो उसे बाद में घटाया नहीं जा सकता। कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना न केवल गलत है, बल्कि ये एक तरह की सजा की तरह माना जाएगा।
क्या है पूरा मामला?
ये मामला बिहार सरकार के एक रिटायर्ड कर्मचारी से जुड़ा हुआ है। इस शख्स ने पटना हाईकोर्ट के एक फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। दरअसल, सरकार ने इस कर्मचारी को रिटायरमेंट के करीब आठ साल बाद एक चिट्ठी भेजी थी, जिसमें लिखा था कि उसकी सैलरी तय करते समय गलती हो गई थी और उसे ज्यादा पैसा दे दिया गया है। इसलिए अब 63,765 रुपये वापस लिए जाएंगे।
हाईकोर्ट ने सरकार के इस कदम को सही ठहराया था और कर्मचारी की याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले की गहराई से जांच की और साफ कहा कि अगर किसी कर्मचारी की सैलरी तय हो गई है, तो उसमें बाद में कोई बदलाव या कटौती नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में सरकार की गलती की सजा कर्मचारी को नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि रिटायरमेंट के कई साल बाद कर्मचारी को वसूली का नोटिस भेजा गया। कोर्ट ने साफ कहा कि सरकार चाह कर भी पिछले महीनों या सालों की सैलरी में कटौती का फैसला नहीं ले सकती।
प्रमोशन मिला लेकिन ग्रेड कम कर दिया
यह मामला और भी पेचीदा इसलिए है क्योंकि इस कर्मचारी को साल 1966 में बिहार सरकार में आपूर्ति निरीक्षक की पोस्ट पर रखा गया था। इसके बाद 15 साल की नौकरी के बाद प्रमोशन मिला, लेकिन अप्रैल 1981 से उसे फिर से जूनियर ग्रेड में डाल दिया गया। यानी प्रमोशन मिलने के बावजूद उसका वेतन और पद downgraded कर दिया गया।
25 साल की नौकरी के बाद मार्च 1991 में उसे SDO (सब डिविजनल ऑफिसर) बनाया गया। इसके कुछ सालों बाद, 1999 में सरकार ने एक प्रस्ताव लाया, जिसमें कहा गया कि विपणन अधिकारी और एडीएसओ की सैलरी में 1996 से संशोधन किया गया है। इस संशोधन में सैलरी घटा दी गई थी।
2001 में रिटायर, 2009 में नोटिस
2001 में कर्मचारी रिटायर हो गया था। लेकिन 8 साल बाद, 2009 में उसे एक नोटिस भेजा गया, जिसमें कहा गया कि सैलरी तय करने में गलती हुई थी और अब सरकार को पैसे वापस करने होंगे। जब कर्मचारी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो वहां से भी राहत नहीं मिली।
सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत
सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में कर्मचारी के हक में फैसला सुनाया और कहा कि एक बार जो सैलरी तय हो गई, वो कर्मचारी का अधिकार बन जाता है। अगर बाद में सरकार को लगता है कि कोई गलती हुई है, तो वो अपनी गलती के लिए कर्मचारी को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि ऐसे मामलों में सैलरी की कटौती करना न केवल अनुचित है बल्कि इससे कर्मचारी की गरिमा को भी ठेस पहुंचती है। कोर्ट ने राज्य सरकार के आदेश को रद्द करते हुए सख्त हिदायत दी कि भविष्य में ऐसे मामलों में पहले सोच-समझ कर कदम उठाया जाए।
इस फैसले से देशभर के लाखों सरकारी कर्मचारियों को राहत मिल सकती है। अगर सरकार ने कभी सैलरी तय करने में गलती की है तो उसकी सजा कर्मचारी को नहीं मिलनी चाहिए। ये फैसला उन लोगों के लिए मिसाल है जो रिटायरमेंट के बाद भी परेशान किए जाते हैं।
इस पूरे मामले से एक बात साफ हो गई है कि सुप्रीम कोर्ट आम लोगों के हक में खड़ा है और सरकार को भी जवाबदेह बना रहा है। अगर आपके साथ भी कभी ऐसा कुछ हो तो डरिए नहीं, कानून आपके साथ है।